बांग्लादेश इस समय एक बार फिर भीषण हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता की आग में झुलस रहा है। छात्र नेता उस्मान हादी की निर्मम हत्या ने देश के हालातों को इस कदर बिगाड़ दिया है कि अब अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस की कुर्सी खतरे में नजर आ रही है। जिस छात्र शक्ति और जनआक्रोश के दम पर शेख हसीना को सत्ता छोड़नी पड़ी थी, वही ताकत अब यूनुस सरकार के पतन की पटकथा लिखती दिख रही है।
इंकलाब संगठन का अल्टीमेटम और यूनुस की चुनौती
उस्मान हादी की हत्या के बाद 'इंकलाब' संगठन ने मोहम्मद यूनुस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। संगठन के सचिव अब्दुल्ला अल जाबेर ने सीधी चेतावनी देते हुए कहा है कि सरकार के पास अपराधियों पर कार्रवाई करने का समय समाप्त हो चुका है। जाबेर का तर्क है कि यदि सरकार अपने 'क्रांतिकारियों' की रक्षा नहीं कर सकती, तो उसे सत्ता में बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।
यह आक्रोश केवल एक हत्या तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी राजनीतिक साजिशें और सत्ता संघर्ष की बू आ रही है। चर्चा है कि मोहम्मद यूनुस अगले साल होने वाले चुनावों को टालकर अपनी सत्ता को लंबे समय तक बनाए रखना चाहते हैं, लेकिन कट्टरपंथी संगठन अब उनके नियंत्रण से बाहर होते जा रहे हैं।
अराजकता और कट्टरपंथ का बोलबाला
बांग्लादेश की सड़कों पर इस समय जो मंजर है, वह किसी डरावने सपने से कम नहीं है। उस्मान हादी की मौत को आधार बनाकर कट्टरपंथी संगठन सड़कों पर उतर आए हैं। 'जुलाई योद्धा' (शेख हसीना के खिलाफ आंदोलन करने वाले) अब खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। हैरत की बात यह है कि इन प्रदर्शनों में जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टरपंथी संगठनों की सक्रिय भागीदारी देखी जा रही है, जो देश को एक अलग ही दिशा में ले जाने की कोशिश कर रहे हैं।
अल्पसंख्यकों और हिंदुओं पर बढ़ता कहर
इस राजनीतिक अस्थिरता के बीच सबसे अधिक प्रताड़ित बांग्लादेश के अल्पसंख्यक, विशेषकर हिंदू हो रहे हैं। सत्ता परिवर्तन के बाद से ही हिंदुओं को चुन-चुनकर निशाना बनाया जा रहा है। 18 दिसंबर को हिंदू युवक दीपू चंद्र की हत्या ने इस नफरत की आग को और भड़का दिया है। झूठे आरोप लगाकर हिंदुओं के घर जलाए जा रहे हैं और उन्हें सरेआम प्रताड़ित किया जा रहा है।
हिंदुओं पर हो रहे इस अत्याचार की गूंज भारत में भी सुनाई दे रही है। दिल्ली से लेकर कोलकाता और भोपाल से लेकर जम्मू-कश्मीर तक, मोहम्मद यूनुस सरकार के खिलाफ कड़ा विरोध प्रदर्शन हो रहा है। विश्व हिंदू परिषद और अन्य संगठनों ने बांग्लादेशी दूतावासों के बाहर प्रदर्शन कर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान इस ओर खींचने की कोशिश की है।
क्या यूनुस का हश्र भी हसीना जैसा होगा?
आज बांग्लादेश में सवाल यह नहीं है कि चुनाव कब होंगे, बल्कि सवाल यह है कि क्या मोहम्मद यूनुस अपनी सरकार बचा पाएंगे? इंकलाब संगठन की यह चेतावनी कि "अगर जिम्मेदारी नहीं निभाई तो फिर खून बहेगा", इस बात का संकेत है कि देश एक बड़े गृहयुद्ध की ओर बढ़ सकता है।
मोहम्मद यूनुस जो दुनिया के सामने शांति के मसीहा बने फिरते हैं, आज अपने ही देश में कट्टरपंथियों और आक्रोशित छात्रों के निशाने पर हैं। यदि उन्होंने उस्मान हादी के हत्यारों पर कड़ी कार्रवाई नहीं की और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की, तो वह दिन दूर नहीं जब उन्हें भी शेख हसीना की तरह देश छोड़ने या सत्ता गंवाने पर मजबूर होना पड़ेगा।
निष्कर्षतः, बांग्लादेश इस समय उस मुहाने पर खड़ा है जहाँ से वापसी का रास्ता केवल कानून के राज से ही संभव है, लेकिन फिलहाल वहां केवल 'भीड़ तंत्र' का राज दिखाई दे रहा है।